दृश्य-1
खुले
मैदान में
कबूतर
दाना चुग रहे हैं,
बार-बार
उड़कर-घूमकर
किसी
को ढूंढ़ रहे है!
मन
ही मन सोच रहे हैं
दाना
किसने डाला है?
दिल
से दुआएं दे रहे हैं
अनजाने
को ही शुक्रिया बोल रहे हैं
उस
अनजाने ने,
लम्बे
सफ़र में विश्राम दिया है
भड़क
रहे भूख को शांत किया है
हतप्रभ
परिंदों पर एहसान किया है
मानव
के श्रेष्ट होने का प्रमाण दिया है
कबूतर
कृतज्ञता के साथ
उसके
होने के अहसास पे,
चैन
से दाना चुग रहे हैं!
दूर
चौराहे पे बैठा कोई,
कबूतरों
की बेताबी समझ रहा है, और
मन
ही मन मुस्कुरा रहा है!
दृश्य-2
मंदिर
के वृहत प्रवेश-द्वार पे
एक
बड़े से टाइल पे,
किसी
का नाम लिखा है!
हर
श्रद्धालु वह नाम पढ़ रहा है
मन
ही मन उसका मूल्य आंक रहा है
सोच
रहा है
बड़े
नाम वाले ने दान दिया है
श्रधा
हो ना हो, अर्थ का निवेश किया है!
बगल
के ही कोने में
एक
बूढ़ा, अपाहिज भिखारी,
दिल
की दुआवों को दिल में रोक रखा है
चंद
सिक्कों से टूटने वाली
बांध
जोड़ रखा है
वह
भी उस बड़े नाम वाले की राह देख रहा है
उसे क्या पता
बड़े
शहर की बड़ी हवेली में वह बड़े नाम वाला
नयी टइलों पे नाम लिखवा रहा है!