Friday, December 20, 2013

Phate Khaton ko Phir se Jodta Raha

वो वरक़-दर-वरक़ दिल के ज़ख्म पढ़ता रहा
धूल जमी, फटे खतों को फिर से जोड़ता रहा

चाँद शब भर चांदनी बिखेरे उसके लिए तरसता रहा
वो सूरज की तलाश में सहर तक तड़पता रहा

एक चिराग की रोशनी को कैद कर रखा था उसने
इसी गुमान में फ़लक के नूर को दरकिनार करता रहा

उसके आँगन से वो चिड़ियाँ उड़ चुकी थी
अब वह आँगन के सारे पेड़ों को काटता रहा

उस चेहरे पर न जाने क्या पढ़ा था उसने
यादों को हर्फ़ दर हर्फ़ आँसूओं से मिटाता रहा !!


Saturday, December 7, 2013

Ek Ruhani Sukoon Hai

वो चंचल है
वो बुलबुल है
कमाल की चाल
वो हिरनी है

वो अपने में मस्त
मस्तानी मौज़ है
तारों जैसे टिमटिमाती
घास पर जमी ओस है

वो पूस में निकली
सुहानी धुप है
इतनी सिद्दत से तराशी गयी
एक मात्र रूप है

वो प्रेमी की चिट्ठी में बसी आस है
चिट्ठी पढ़ती प्रेमिका की मुस्कान है

बादलों की गोद से निकली
गतिमान बूँद है
प्यासी धरती की
बची हुई आस है

रोते बच्चे की इंतज़ार है
माँ की ममता का अहसास है

दूर से सुने पहाड़ों तक पहुँची
हवा का ऐतबार है
संग में लाये खुशबू की सौगात है

वो तन्हाई में साथ रहती
तसव्वुर में ही हरदम मिलती
हकीकत न सही, मगर
वो एक रूहानी सुकून है !

Tera Manana Bekaar Huaa

मुझे उनसे कोई शिकायत नहीं
यह तो आम बात थी, मगर इस बार
मेरा रूठना बहुत लम्बा हुआ
अब उनका मनाना बेकार हुआ !

उनके जाने के बाद दिल में कोई तमन्ना न रही
ख्वाबों को तो पहलें ही दफना चुके थें, मगर
बेसबब जन्म लेते चर्चाओं को सुन
अब टूटे चाप से ज़िन्दगी खेना बेकार हुआ !

शाख कब तक सूखे पत्ते को संभालती
हरे पत्तों के ताने पर जब उसने साथ छोड़ा
तब शज़र खूब रोया, मगर
अब शज़र का रोना बेकार हुआ !

घर में अन-बन तो छोटी सी बात पर हुई थी
गैरों ने हवा दी, और
उसमें अपने इस कदर जलें कि
अब उन्हें बुझाना बेकार हुआ !

Friday, December 6, 2013

Khoye Khoye ho Tum

खोये खोये हो तुम
इंतज़ार किसका है ?

बंद पलकों के पीछे कैद है कोई
तस्वीर ही सही पास है कोई?

बेक़रार आँखों में सवाल है कोई
मिलोगे किस हाल में, जवाब है कोई?

झांकते हो झरोखों से बात है कोई
चला गया है, या आने वाला है कोई?

झुकते हैं ये बादल, इशारा है कोई
पलकें हुई हैं नम, याद आया है कोई?

Wednesday, December 4, 2013

Shabdon ke Saath Beh Gayi Kavita

विचारों का आधार न मिला
जनहित के लिए कारोबार न मिला
भागते समय का सरोकार न मिला
अपेक्षित अधिकार न मिला 
हुई विषय से परे, तो
शब्दों के साथ बह गयी कविता

उतुंग शिखरों पर नज़र गड़ाए
समुद्र तली में रमी लगाये
भटकती हवा से मेल बढ़ाये
कलियों के संग रास रचाये
हुई ज़मीन से विरक्त, तो
शब्दों के साथ बह गयी कविता

मन में एक भाव दबाते
सपनों का संसार बनाते
खुद से हीं तर्क लड़ाते
न जाने किससे छिपाते
हुई विकल, तो
शब्दों के साथ बह गयी कविता