Tuesday, September 30, 2014

कुछ दोस्त कुछ दुश्मन यहाँ आये जा रहे हैं

कुछ दोस्त कुछ दुश्मन यहाँ आये जा रहे हैं
'Starry Night Over the Rhone' by  Vincent van Gogh
कैसी कशमकश में ज़िन्दगी बिताये जा रहे हैं

हसीं सफर ये अपना कभी न ख़त्म होगा
हर मंज़िल को हम ठेंगा दिखाये जा रहे हैं

आसमानो अपनी झोली फैला कर रखो
कारवाँ के दीवाने खजाना लुटाये जा रहे हैं

पाक मक़सद के परवानो का अंजाम और कैसा 
पीछे आएगा ज़मान सो चिराग़ जलाये जा रहे हैं

रात को डराने का उपाय सूरज करे सो करे
हम तो अपनी हैसियत से अँधेरा जलाये जा रहे हैं

यारों की महफ़िल लगेगी फिर आसमानों में
सितारों को सजने की मोहलत दिये जा रहे हैं

Wednesday, September 17, 2014

ऐसा क्यूं है कि चराग सारे चुप हैं


ऐसा क्यूं है कि चराग सारे चुप हैं
वतन परस्तों की कतारे चुप हैं

अँधेरे से जंग कब तक झोपड़े करेंगे
अभी भी महलों की दीवारे चुप हैं

सड़क पर क़त्ल हुआ एक गरीब का
अमीरों की जश्न में डूबे अखबारे चुप हैं

कोई वज़ह तो होगी कि हिमालय भी बहने लगा
पूछो तो, हर राज्य की सरकारे चुप है

कैसा खौफनाक मंज़र था उस वारदात का
आज तक चाँद और तारे चुप हैं

बर्बादी बेहिसाब हुई पूरा शहर डूबा
अपनी ग़लती पे दरिया और किनारे चुप हैं

जुर्म करने वालों तुम बेकौफ फिरो
आज कल बगावत के नारे चुप हैं

पत्थरों की चोरी में चिराग भी गुम हुए
अपनी बदकिस्मती पे मज़ारे चुप हैं

Saturday, September 13, 2014

जज़्बातों के दरिया को घुमाव नया मिले

चलते फिरते रास्तों पे पड़ाव नया मिले
जज़्बातों के दरिया को घुमाव नया मिले

दिन धूप  जलना  चाँदनी  रात  पिघलना
अँधेरे उजाले के जंग को लहकाव नया मिले

जो फिसलना मुक्क़दर हो राहे इश्क़ में, तो
ज़माने की नज़र के लिए चढ़ाव नया मिले

हमने जाना है मजा-ए-फ़ाक़ा-मस्ति मगर
ज़ायका  परस्ती में कोई  घाव  नया मिले

गुफ़्तगू  हुई  तनहाई  से  सारी  रात
तन्हा सफर में इसे पड़ाव नया मिले

मुंतज़िर हैं साहिल पे हमारी हसरते तमाम
हक़ीक़त से लड़ते सपनों को बहाव नया मिले

मिट जो जायें राहे इंतज़ार में यूँ ही बेमाने
ज़माने को चर्चा और मनबहलाव नया मिले

मुख़्तसर है दुनिया मुख़्तसर ज़िन्दगानी
दिलखोल मिले सबसे कुछ ठहराव नया मिले