Friday, February 13, 2015

असमंजस

"जा, ले गया!" ( एक थकन भरी साँस के साथ )
पिता के मुँह से इतने ही शब्द निकल पायें,
कबूतरों को दाने डालने के क्रम में
कब कौआ आया
और कार्ड उठा कर उड़ा,
पता ही नहीं चला

कार्ड था इकलौते बेटे की शादी की
बेटे ने आग्रह पूर्वक पिता को आमंत्रित किया था

कार्ड पढ़ने में हिचकिचाते हुए
उसे बाद के लिए टाल दिया था
और कबूतरों को दाना डालने लगें थे

अब सवाल यह रह गया कि
बेटे से शादी का वेन्यू कैसे पूछें ?
बेटे ने माँ को बुलाया है या नहीं ?
और अगर जो बेटा घर आया और कार्ड देखना चाहा तो ?

चेहरे पे उदासी से ज़्यादा उलझने थीं
स्वाभिमान विचारों में तैर रहा था किसी भी वक़्त डूब जाने के लिए
उम्र की ढलान पे रिश्तों की चढ़ान नज़र आ रही थी
और कौआ उड़े जा रहा था
चोच में दबाये सारे जवाब ..... 

Thursday, February 5, 2015

गिरने के डर से गिरे जा रहे हैं

Painting by Vincent van Gogh
गिरने के डर से गिरे जा रहे हैं
मरने से पहले ही मरे जा रहे हैं

ज़िन्दगी का अजीब दौर है यह
जो भी काम मिला करे जा रहे हैं

काँटों ने इल्ज़ाम क्या लगाया
फूलों के रास्ते भी बुहारे जा रहे हैं

हौसले की बुनियाद रिसी भी नहीं
नये मकान तक भरे जा रहे हैं

आईने में अपनी शक्ल देखी भी नहीं 
कि घबरा कर खुद से परे जा रहे हैं

हमें मालूम है बिखरने की हद
तब भी सँवरने से डरे जा रहे हैं

कोई तो ग़लती निकालो हिसाब में
'शादाब' ढेरों इल्ज़ाम मरे जा रहे हैं