जाने किस ग़लती की सज़ा देती है
देर रात सोऊँ तो भी जगा देती है
एक अरसा हुआ उसके ख़ाबों में रहे
नींद जो आये रुख से पर्दा गिरा देती है
रुस्वाई न दुहाई न गिला न शिकवा
जो बात हुई नहीं सबको बता देती है
नज़र तलाशता हूँ जिसमें वो न दीखे
मौजूदगी का इल्म जा-ब-जा देती है
इस फ़साने को आगे बढ़ाऊँ या रोकूँ
पूछता हूँ जब भी तो मुस्कुरा देती है
इन जुल्मों की फरियाद करूँ किससे
हर एक हाकिम पर जादू चला देती है
उससे ही रौनक है दर्द की दुनिया 'शादाब'
हर सितम को बेबसी का पता देती है !
जा-ब-जा - everywhere
देर रात सोऊँ तो भी जगा देती है
एक अरसा हुआ उसके ख़ाबों में रहे
नींद जो आये रुख से पर्दा गिरा देती है
रुस्वाई न दुहाई न गिला न शिकवा
जो बात हुई नहीं सबको बता देती है
नज़र तलाशता हूँ जिसमें वो न दीखे
मौजूदगी का इल्म जा-ब-जा देती है
इस फ़साने को आगे बढ़ाऊँ या रोकूँ
पूछता हूँ जब भी तो मुस्कुरा देती है
इन जुल्मों की फरियाद करूँ किससे
हर एक हाकिम पर जादू चला देती है
उससे ही रौनक है दर्द की दुनिया 'शादाब'
हर सितम को बेबसी का पता देती है !
4 comments:
Mai kin alfaaz me tarif karu aap ki,
har ek labz bone nazar aate muje...........!11
thank u bhai.
बहुत सुन्दर भावों को शब्दों में समेट कर रोचक शैली में प्रस्तुत करने का आपका ये अंदाज बहुत अच्छा लगा,
शुक्रिया संजयजी ! सब आपलोगों की इनायत है :)
Post a Comment