Thursday, November 14, 2019

खुदको और मजबूर करूँ कितना

खुदको और मजबूर करूँ कितना
तुझसे और दूर जाऊँ कितना

कोई फैसला तुम  हीं  सुनाओ
फासला मैं भी निभाऊँ कितना

राहे उम्मीद बेरंग ही रहती है
बेकसी में रंग भरूँ कितना

कोई मंज़िल सी दिखती नहीं
इसी सफ़र को दोहराऊँ कितना

जिसकी खबर होती नहीं उसका 
हाल खुद ही को सुनाऊँ कितना

इस शोर भरी दुनिया में ढूँढूँ कहाँ
ख़ामोशी में सब कुछ कहूँ कितना

ग़ुलाम उसकी मर्ज़ी के "शादाब" सभी हैं
जो बेपरवाह जिऊँ तो जिऊँ कितना !!


Saturday, October 19, 2019

मैं खुद को ढूँढ लूँगा

मुझे यकीन है
मैं खुद को ढूँढ लूँगा
तुम्हे ढूँढ़ते ढूँढ़ते

खोया भी तो था
ऐसे हीं
तुम्हे खोते खोते
तुम्हे भूलते भूलाते

बस अफ़सोस इतना है कि
कुछ वक़्त हाथ से निकल गया
इन सब के दौरान
जो शायद फिर नहीं आने वाला

लोगों  का मानना है, वो मेरी उम्र थी
जो निकल गयी
मगर कौन जाने, खुद के मिलने पर
उसका भी मन बदले
फिर जवानी खिले रंग भरे
"आखिर जन्म और मौत
दो ही तो लकीरें है जीवन में
बाकी के पड़ाव तो मानने की चीज़े हैं"

सारे रिश्ते वैसे ही हैं
वहीँ पे सोते 
कभी कभार जम्हाई लेते
जब भी परिस्थितियों की सर्द हवा
गुजरती है उधर से 

मगर मुझे यकीन है
खुद से खुद के मिलने का
अबके मौसम बदलते ही!!

Friday, July 26, 2019

दोस्तों में अपनी भी शुमारी थी

दोस्तों में अपनी भी शुमारी थी
थी, जब तलक हममे खराबी थी

एक बूँद फिर ज़मीं में खो गयी
प्यासी चिड़िया को बड़ी हैरानी थी

अहले इश्क़ में सुकून किसको यहाँ
जो तबियत तुम्हारी है कभी हमारी थी

कितने आयें संग कितने जुदा हुए
कहीं मजबूरी तो कहीं होशियारी थी

उसकी हँसी रुक भी जाती मगर
एक अरसे आँख आसूँओ से भारी थी

नियत तुम्हारी "शादाब" कैसे छुपती
दिलो-दिमाग में तो काफी दूरी थी!!