हमारे ग़म में कोई कमी न थी
ये ज़िन्दगी यूँ ही रमी न थी
हर चिराग बुझा दी मेरे रक़ीब ने
मगर मेरी चाहत मौसमी न थी
वफायें धूल बन उड़ी हर सम्त
जिनके इरादों में नमी न थी
ज़ख्म फिर हुआ हरा बहार आयें
जो गुज़री हवा वो मातमी न थी
शबनम से मोहब्बत हुई 'शादाब'
फिर धूप से दोस्ती लाज़मी न थी
ये ज़िन्दगी यूँ ही रमी न थी
हर चिराग बुझा दी मेरे रक़ीब ने
मगर मेरी चाहत मौसमी न थी
वफायें धूल बन उड़ी हर सम्त
जिनके इरादों में नमी न थी
ज़ख्म फिर हुआ हरा बहार आयें
जो गुज़री हवा वो मातमी न थी
शबनम से मोहब्बत हुई 'शादाब'
फिर धूप से दोस्ती लाज़मी न थी
1 comment:
sir u r awesome, nd proud to be ur student
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