आज वह नंगे पाँव चला है,
चहरे पर भी खूं चढ़ा है!
ढूंड रहा है उस कुत्ते को,
जो कल रात था दौड़ाया,
पाकर निहत्था,
जोर से था लपका!
खैरियत थी कि
सही समय पर विवेक जागा,
सही समय पर विवेक जागा,
चप्पल हाथ पहन कर भगा!
आज चला है,
अजेय पथ पर विजय समान,
शर्मा जायें सारे धुरंधर महान,
बाहुबल से दुश्मन संहारेगा,
समाज को उस कुत्ते से उबारेगा!
विजयी पथ पर है जो पहली छड़ी,
गांडीव न जाने कब से है वहाँ पड़ी,
ससम्मान अपना शस्त्र उठाया,
खोल भुजायें दिशाओं में हुंकार लगाया!
युद्ध भूमी पर दुश्मन बैठा भारी,
सामने से वार करने में है खतरा भारी,
पीछे से ही टांगों पर शस्त्र चलाया
दुश्मन की चिग्घाड़ सुन
पीछे दौड़ लगाया
दूर पहुँच के सांस लेता है, मानो
समाज को मिला विजयी नेता है!
पेड़ के नीचे बैठ सोच रहा है
सोच रहा है, कि
पैर आगे का टूटा है, या पीछे का,
जो भी हो,
कुत्ते को अच्छा सबक सिखाया है!
अब वह न किसी को दौड़ायेगा
मुझसे तो नज़र भी न मिलायेगा!!
कुत्ते का अभी हाल देखना बाकी है,
चेहरे पर एक विजयी मुस्कान आयी है!!
2 comments:
achi kavita hai...
Bahut hi achhi tarike se aapne kutte ko marne ki vakyha apne sabdo me ki hai jo lagbhag har insan ke sath juda hai.aur sath hi sath aapne bade bariki se us insan ke jit ko vyangatmak tarike se pes kiya hai jo is kavta ko char chand laga deta hai,
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