पीछे कदम बढ़ाता
माज़ी के धुँधले निशानों पर
भूल आया था जिसे
उसे चारो ओर, ढूँढता
एक कदम आगे, तो
दो कदम पीछे
धक्का खाता, संभलता
चाह कर भी, मुड़ न पाता
उन साँसों कि आवाज़
आँखों से बात
कुछ गुनगुनाहट
फिर सुनना, सुनाना, चाहता
वक़्त बेवक़्त का गुस्सा
बेसबब तकरार
उसपर से ये बारबार
यादों में भी उसी से, झगड़ता
आते-जाते, चौक-चौराहे
कुछ देर का संग
एक लम्बी जुदाई
सुलगती यादें, भुलाता
भीड़ में
है वह तन्हा !
माज़ी के धुँधले निशानों पर
भूल आया था जिसे
उसे चारो ओर, ढूँढता
एक कदम आगे, तो
दो कदम पीछे
धक्का खाता, संभलता
चाह कर भी, मुड़ न पाता
उन साँसों कि आवाज़
आँखों से बात
कुछ गुनगुनाहट
फिर सुनना, सुनाना, चाहता
वक़्त बेवक़्त का गुस्सा
बेसबब तकरार
उसपर से ये बारबार
यादों में भी उसी से, झगड़ता
आते-जाते, चौक-चौराहे
कुछ देर का संग
एक लम्बी जुदाई
सुलगती यादें, भुलाता
भीड़ में
है वह तन्हा !
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