वो वरक़-दर-वरक़ दिल के ज़ख्म पढ़ता रहा
धूल जमी, फटे खतों को फिर से जोड़ता रहा
चाँद शब भर चांदनी बिखेरे उसके लिए तरसता रहा
वो सूरज की तलाश में सहर तक तड़पता रहा
एक चिराग की रोशनी को कैद कर रखा था उसने
इसी गुमान में फ़लक के नूर को दरकिनार करता रहा
उसके आँगन से वो चिड़ियाँ उड़ चुकी थी
अब वह आँगन के सारे पेड़ों को काटता रहा
उस चेहरे पर न जाने क्या पढ़ा था उसने
यादों को हर्फ़ दर हर्फ़ आँसूओं से मिटाता रहा !!
धूल जमी, फटे खतों को फिर से जोड़ता रहा
चाँद शब भर चांदनी बिखेरे उसके लिए तरसता रहा
वो सूरज की तलाश में सहर तक तड़पता रहा
एक चिराग की रोशनी को कैद कर रखा था उसने
इसी गुमान में फ़लक के नूर को दरकिनार करता रहा
उसके आँगन से वो चिड़ियाँ उड़ चुकी थी
अब वह आँगन के सारे पेड़ों को काटता रहा
उस चेहरे पर न जाने क्या पढ़ा था उसने
यादों को हर्फ़ दर हर्फ़ आँसूओं से मिटाता रहा !!