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Friday, January 16, 2015

पूरे शहर को बंदर हम भी बना रखे हैं

तुम्हारे दिल के राज़ हम भी छुपा रखे हैं
तुम्हारे जैसे हवाई क़िले हम भी बना रखे हैं

क्या हुआ जो मौक़ा तुम्हे मिला इसबार
अगली बार को तिजोरी हम भी लगा रखे हैं

लूटने का मुहूर्त नहीं धोखे की सज़ा नहीं
ज्योतिसों के आगे हथेली हम भी फैला रखे हैं 

बेहतर है पारी पारी से जल्दी जल्दी लूटें
इस ख़ामोशी में कुछ को हम भी सुला रखे हैं 

क्या सड़क क्या बाज़ार क्या गली कूचे
पूरे शहर को बंदर हम भी बना रखे हैं 

सब्र करो कि भोर ये हुई वो हुई
अकुलाते लोगों को पैसा हम भी खिला रखे हैं

जागोगे तो हसीं ख़ाबों में खलल पड़ेगा
रंग बिरंगे सपने "शादाब" हम भी सजा रखे हैं

Monday, December 8, 2014

हाँ बना दो भागवद गीता को राष्ट्रीय ग्रन्थ

हमें ज़ख्म का पता नहीं, दर्द अपना कभी जाना नहीं 
और वो मरहम की नुमाईश कर मशहूर हुए जा रहे हैं

हाँ बना दो भागवद गीता को राष्ट्रीय ग्रन्थ
अब तो देश अपना खुशहाल हो ही गया है
सबको भरपेट खाना मिल ही रहा है
देश की संप्रभुता पूरी तरह सुरक्षित है ही
संसद में सब खुश है
हरेक मुद्दे को पूरा विमर्श करके निपटा दिया गया है
और अब बाकी कुछ नहीं रहा!

हाँ बना दो भागवद गीता को राष्ट्रीय ग्रन्थ
ताकि जब कोई मस्जिद में नमाज़ अदा करने जाये
तो साथ रखे गीता, अपने माथे से लगा कर झुके
ताकि राष्ट्र का सम्मान हो सके और धर्मनिरपेक्ष बना रहे !

और जब कोई चर्च में प्रेयर करने जाये
तो पॉकेट में रखे गीता पॉकेट एडिशन वाला
ताकि कैंडल जलाते वक़्त भी उसे याद रहे
कि वो एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट में शरण लिए हुए है !

जब आतंकवादियों से मुठभेड़ हो
तो सेना गीता का कवच पहन कर लड़े
मजाल है कि एक भी गोली भेद कर जाये !

जब चीनी सिपाही देश में अतिक्रमण करें
तो भारतीय सेना साथ ले चले अपना राष्ट्रिय ग्रन्थ
पूजा अर्चना करें फिर बन्दूक उठाये
ताकि राष्ट्र का अपनमान न हो और हम धर्म निरपेक्ष देश बने रहे !

जब कोई पेड़ पे मज़बूर हो कर झूलना चाहे
तो भी साथ रखे गीता
ताकि पता चल सके कि भूखे होने का अपराधी इसी राष्ट्र का था
और उसपे करवाई हो सके, कमिटी बन सके
कि यूँ खुले में प्राण त्यागने वाले ने बिना परमिशन कूच क्यूँ किया !

और जब दुनिया का सबसे महँगे से महँगा घर की तामीर हो
तो उसका शिलान्यास  के वक़्त पढ़ा जाए गीता
ताकि पता चल सके इस राष्ट्र के महलों में भी लोग
राष्ट्र से जुड़े हुए हैं और धर्म निरपेक्ष है !

हाँ कर दो जो अब तक न हुआ
जो अनंत काल का ऋण अबके आपके कंधे पे आया है
जो सवा सौ करोड़ लोगों की मूलभूत ज़रुरत है
उसकी अदायगी आप समय रहते कर दो
कौन जाने कल हो न हो !
ऊपर जवाब तलब हो गया तो !

Thursday, December 4, 2014

संसद में अल्टरनेटिव एनर्जी सोर्स "चिल्लाना" का सफल परिक्षण

ठंढी का मौसम है
मगर अबके बिजली की ज़रुरत नहीं
कोयला जहां है वही है 
बिजली तार में लापता है
संसद से पैगाम आया है
सब चिल्ला चिल्ला कर गर्मी पैदा करें
जब नहाना हो
गीजर चलाने के बजाये चिल्लाएं
और फिर नहाएं !
जब कपड़े प्रेस करने हो
कपड़े बिछाकर चिल्लाएं
फिर कपड़ों पे हथेली चलायें !
जब अँधेरे में देखना हो
आँख खोल कर चिल्लायें
और अँधेरा दूर भगाएं ! 

एक सांसद का कहना है
फॉसिल फ्यूल पे निर्भरता कम करने के लिए कई कदम उठाये गयें थे
सभी देशों में इसपे काम चल रहा था
उसी कड़ी में अपने संसद भवन और राज्य भवन में भी बहस (रिसर्च)  हुई
जिसके फलस्वरूप इस नए अल्टरनेटिव एनर्जी सोर्स "चिल्लाना" का पता चल सका
सभी संसद अपनी सफलता पे गौरान्वित हैं
एक दूजे को बधाई दे रहे हैं -चिल्लाते हुए
संसद/राज्य भवन में बिजली की तारे उतारी जा रही हैं
एक सांसद ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा - ये सबसे टिकाऊ और सस्ता अल्टरनेटिव रिसोर्स है
सभी देशवासिओं को भरोसे में लेने के लिए
सरकार संसद में हुए इस सफल परिक्षण का वीडियो ज़ारी कर दी है

दुसरे सांसद से जब यह पूछा गया कि
राजस्व पे इसका असर पड़ेगा
तो उनका कहना है
- इस बारे में विचार हो रहा है,
कमेटी गठित कर दी  गयी है
उसके रिपोर्ट के अनुसार काम होगा और
चिल्लाहट नापी मशीन हर घर में इनस्टॉल कर दी जाएगी !
इससे अच्छा खासा राजस्व प्राप्त होने को ले कर
सांसदजी ऑप्टिमिस्टिक हैं !
उन्हें केवल एक बात की दुख है
कि इसकी खोज अगर गर्मी में हो गयी होती तो
गर्मी काटने में बहुत सुविधा होती
चलो कोई नहीं …
गर्मी तो फिर आएगी !

चिल्लाने के नफे नुकसान के  बारे में जब उनसे पूछा गया तो
उनका कहना है
- इसके बारे में उन्होंने डॉक्टरों की सलाह ले ली है
चिल्लाने से वेट लॉस होता है
इसलिए जो जीम जाते हैं वे घर पे ही चिल्ला लिया करें
और घर में अगर अधिक मोटे लोग हों 
तो किसी गरीब के घर में जा के चिल्ला दिया करें!

सरकार इसे रोज़गार की समस्या का हल के तौर पे भी देख रही है 

इस खोज़ ने पूरे देश में एक नया जोश भर दिया है 
सारी जनता उत्साहित दिखाई देने लगी है
घर घर में बच्चे चिल्ला चिल्ला कर पढ़ने लगें हैं
बाथरूम गायकों की चाँदी हो गयी है
उनके चिल्ला के गाने पे अब किसी को कोई ऐतराज़ नहीं 

सभी मान रहे हैं उनका वोट बेकार नहीं गया
बिलकुल सही सांसद चुने हैं
और शहरों में रैलियां निकाली जा रही हैं
जिनमें नारा है -
"आओ चिल्लायें.... 
हाँ मिलजुल कर चिल्लायें.... 
तुम क्या सोच रहे हो पगले
तुम भी चिल्लाओ ....
हम भी चिल्लाएं
देश बचाएँ
आओ चिल्लायें..."

Saturday, November 29, 2014

अब अदालतों में सुनवाई नहीं होगी

अब अदालतों में सुनवाई नहीं होगी
तुम्हारी हमारी जग-हसाई नहीं होगी

तुम्हारे नक़ाब न हम हटाएँगे, बोलो
हमारे रास्तों की भी सफाई नहीं होगी

बेहिचक पूरी हवस के साथ तुम लूटो
इस नेक काम के लिए कारवाई नहीं होगी

नंगे भूखों का इस दुनिया में क्या काम
अमीरों की ज़रुरत में कटाई नहीं होगी

फूंक दो लाशें ही तो हैं इन्हे क्या देना 
ज़मीन के टुकड़ेे की भरपाई नहीं होगी

बाज़ार खुला हथियारों का बन्दूक बोओ
जो मिट्टी मर गयी तो बुआई नहीं होगी

ईमान के काम से अब बरक़त कहाँ
जुर्म करो, भले खुले में बड़ाई नहीं होगी

क्या खूब मक़ाम पे तुम पहुँचे 'शादाब'
इस अंजुमन में कोई रुस्वाई नहीं होगी !

Tuesday, November 18, 2014

कतरा कतरा लहू पानी में मिल गया

'Skull of a Skeleton' by Vincent van Gogh
कतरा कतरा लहू पानी में मिल गया
वो सियासत में सर से पाँव खिल गया

जो भी आया राह में बेगैरत ठहरा
इस ज़माने की रवायतों से हिल गया

कुदरत की साज़िश थी या आदमजात की
आग उगलने वाला हर एक लब सिल गया

रात कोने में बैठा फिर कोई रोता था
उजालों की रफ़्तार में जैसे फिसल गया

एक अरसे से दरिया प्यास छुपाये बैठा था
जो गया किनारे दरिया में हीं मिल गया

तुम कैसे बचे रहे इस ग़लतफ़हमी से
जब कि हर ईमान वाला उसमें जल गया

हर आँख ने खून उगला था उस मंज़र पे
हैरानी है ज़मान इतनी जल्दी भूल गया

हद ये हुई वारदात का चश्मदीद गवाह चाँद
फैसले के दिन बादल पहन निकल गया

किसके जुर्म की सज़ा किसे मिली 'शादाब'
तू भी तो ऐन मौके पर ही बदल गया !

Thursday, November 6, 2014

आम की खेती बबूल से करवायी है

हमने एक और ग़लती अपनायी है
आम की खेती बबूल से करवायी है

पिछले मौसम में गर्मी भ्रष्ट थी
अबके मात्र वादों की बाढ़ आयी है

कुबेर और भिखारी एक ही जानो 
पहचान बताने में वादाखिलाफ़ी है

उसने मक्कारी से सही कमाई तो है
फ़िज़ूल में हाय हाय और दुहाई है

लूटने का मौसम आया, लूटेरे आयें
बाँझ मिट्टी की बोली लगने वाली है

हवा अब भी बेपरवाह है फिरती
कोई बताये उस पर भी शामत आयी है

शाख से झूलते मुर्झाये जिस्म ने बताया
इस इलाके में सूखे की कारवायी है

गर गूंगे हो 'शादाब' तो गूंगे रहो
जिसने मुँह खोला जान पे बन आयी है !