Monday, August 5, 2013

होती जब भी उदय है!

घनघोर तिमिर के आँचल में
बसती एक दीप्ती उज्जवल है
हरती  मानस के कुहे को
होती  जब भी उदय है!

रोशन होता मन का हर कोना
शीतल कोमल उसकी अरुणिमा से
आस वासना सब मिट जाता
अनुपम ज्योति की आभा से!

नभ क्षितिज के संगम पे
जब भी नयन पग बढाता है
पाकर विहवल उदय दृश्य
तन मन को हर्षाता  है!

भोर भई, भोर भई
मन हरदम ही चिल्लाता है
पाकर प्रेम ज्योति के आलिंगन को
घड़ी घड़ी हर्ष विकल हो जाता है!

मधुप सुकोमल पावस की वल्लरियाँ
उस ज्योति में इठलाती हैं
बंद चमेली के पंखुड़ियों पे
ओस की बूँद शर्माती है !

ज्योति उदय की बेला पावस के संग
खेलती, मानस जगती को नचाती  है
घुमड़ घुमड़ के काले बदल
किरण सोख, नभमानस को भिंगाते हैं !

प्रमोद मनाता है जगत
हुई ज्योति की अनुकम्पा है
गाँव शहर के जल कुंडों में
पंकज भी हर्ष मनाता है!

Tuesday, July 30, 2013

बेमिज़ाज समंदर बदहवास लहरें

बेमिज़ाज समंदर बदहवास लहरें
गुमसुम है समंदर गुमनाम हैं लहरें

लहरों की भीड़ देख दम तोड़ती लहरें
लहरों-व-साहिल का मिलन देख जोर लगाती लहरें

कुछ भटकती लहरें, कुछ मटकती लहरें
लहरों का क़त्ल कर आगे बढ़ती लहरें

लहरों को राह दिखाती लहरें
खुद को मिटा लहरों को जगाती लहरें

क़त्ल करके भी गुस्साती लहरें
मिटकर भी मुस्कुराती लहरें

Friday, July 26, 2013

मुंह की बात सुने हर कोई

A mind-blowing lyrics which didn't let me sleep until I wrote it in my own words....Here are both 

Neem ka Ped Title track
“Mu ki baat sune har koi”
Sung by Jagjit Singh
Lyrics: Nida Fazli
Music: Jagjit Singh
The Lyrics goes like this:

मुंह की बात सुने हर कोई
दिल के दर्द को जाने कौन ,
आवाजों के बाज़ारों में
ख़ामोशी पहचाने कौन  ?
सदियों – सदियों  वही तमाशा
रस्ता- रस्ता लम्बी खोज
लेकिन जब हम मिल जाते हैं ,
खो जाता है जाने कौन ?

वो मेरा आइना है और ,
मैं उसकी परछाई हूँ
मेरे ही घर में रहता है ,
मुझ जैसा ही जाने कौन  ?

किरण किरण अलसता सूरज
पलक पलक खुलती नींदें
धीमे धीमे बिखर रहा है
जर्रा – जर्रा जाने कौन ?
मुंह की बात सुने हर कोई
दिल के दर्द को जाने कौन ,
आवाजों के बाज़ारों में
ख़ामोशी पहचाने कौन ?


My words-
मुँह की बात सुने हर कोई
दिल के दर्द को जाने कौन 
आवाज़ों के बाज़ारों में
ख़ामोशी पहचाने कौन 

हँसते हैं सब महफिलों में
छत पे जाने रोता कौन
 उठती हैं तारीफ़ें शब में
सहर पे होता कुरबां कौन

झुकती पलकें समझ ना पायें
छिपी हया को माने कौन
रहता है वो साँसों में जब
यादों में अब आये कौन

जल-जल के भी वो मिट ना सका
होता फ़ना अब जाने कौन
बुझते दीप को संभाला था तब
बुझता हूँ अब जलाये कौन

मुह की बात सुने हर कोई
दिल के दर्द को जाने कौन
आवाज़ों के बाज़ारों में
ख़ामोशी पहचाने कौन ….

Thursday, July 4, 2013