Saturday, January 11, 2014

तूने मुझको शायर बना दिया !

उस्ताद नुसरत फ़तेह अली खान की क़व्वाली "ये जो हल्का हल्का सुरूर है " की धुन पे अपने भाव गढ़ने की एक कोशिश ....

ये तो तेरी कशिश की आग थी
जो बुझे चिराग को जला दिया
बनना तो चाहा फ़क़ीर था
तूने मुझको शायर बना दिया !

भटकने की थी ख्वाहिशें 
तूने अपने दर पे फंसा लिया
झुका न था ये सर कहीं
तेरे सजदे में मैंने झुका दिया !

दिल तो कब से खामोश था
मुद्दतों से ही बेहोश था
तूने जाम कैसा पिला दिया
मदहोश करके नचा दिया !
तूने राग कैसा सुना दिया!
पागल हीं मुझको बना दिया !

तुमसे कोई शिकायत नहीं
तुमसे हुई कोई गल नहीं
ये तो तेरा बस एक नूर था
मिला मुझे वो कोहिनूर था
जिसे रब हीं मैंने बना लिया
खुद को जिसमें भुला दिया !

तेरी इबादत मेरा जुनून है
तेरी हँसी मेरा सुकून है
बंदिशें भी तेरी क़ुबूल है
रहमत मिली तेरी तस्वीर है
जिसे दिल में मैंने बसा लिया
तूने दिल को जन्नत बना दिया !


तेरी कशिश की आग थी
जो बुझे चिराग को जला दिया
बनना तो चाहा फ़क़ीर था
तूने मुझको शायर बना दिया !

Wednesday, January 8, 2014

दब गयी एक चीत्कार

बर्फ सी ठंढी रात में
उस अधूरे खंडहर में
जलती रही आग
गूँजते रहें वो ठहाके
और दब गयी एक चीत्कार
उस अधूरे खंडहर में !

क़त्ल हुआ एक साहस का
एक पहल का
बुलन्द-बेधड़क एक स्वाभिमान का
दागदार हुआ, एक रास्ता
जो बना था कई बंधन तोड़ कर
बाहर आने से, उस दहलीज को पार करने से 
जो शादियों से अपने विस्तार पर अकड़ता था

एक उम्मीद की किरण एक कोने से
मिटा दी गई
फिर, समेट ली गयीं अनगिनत पुलकित किरणें
एक भय से
उस खबर से
कि,  दब गयी एक चीत्कार
उस अधूरे खंडहर में !

Saturday, January 4, 2014

सब कहते हैं कि उसने दर्द को देखा है

सब कहते हैं कि उसने दर्द को देखा है
मुझको है मालूम, उसने मेरी आँखों में देखा है !

अश्क है या पानी इसका उसे कोई खबर नहीं
दरिया तो नहीं देखा मगर उसने समन्दर देखा है !

वो झूमते बाग़, वो गाती हवायें उन दिनों
खिज़ा में भी  उसने  बहार  को  देखा  है !

दिन में माहताब, रात में उजाला तन्हाई में
उसने  न  जाने  क्या  क्या  देखा  है !

बहुत देर हो गयी सोच कर शमा बुझा दी उसने 
न जाने किस ख्याल से, शमा फिर से जला कर देखा है !

तारे थें सारे, फिर भी आकाश की वो महफ़िल उदास थी
बड़ी जद्दोजहद से, बादलों का पर्दा हटा कर उसने चाँद को देखा है !



Thursday, January 2, 2014

तू तो बस पिये जा, पैमाना मत देख

न जाने कब ख़त्म हो जाये जाम-ए-ज़िन्दगी
तू तो बस पिये जा, पैमाना मत देख

कुछ पाने की हो तमन्ना तो हौसला रख
और उड़े जा, ऊचाई मत देख

चोटी से भी गिरते हैं लोग यहाँ
सम्भल कर बढ़े जा, उपलब्धियाँ मत देख

इन उजालों में भी भटकाव हैं बहुत
मुकाम भी देख, केवल रास्ता मत देख

कितने हीं मिट गयें यह ईमारत बनाने में
बुनियाद भी देख, केवल सजावट मत देख

कब ये शाम रात बन निगल जाये सबको
औरों को जला, जल खुद भी, केवल तमाशा मत देख !