सब कहते हैं कि उसने दर्द को देखा है
मुझको है मालूम, उसने मेरी आँखों में देखा है !
अश्क है या पानी इसका उसे कोई खबर नहीं
दरिया तो नहीं देखा मगर उसने समन्दर देखा है !
वो झूमते बाग़, वो गाती हवायें उन दिनों
खिज़ा में भी उसने बहार को देखा है !
दिन में माहताब, रात में उजाला तन्हाई में
उसने न जाने क्या क्या देखा है !
बहुत देर हो गयी सोच कर शमा बुझा दी उसने
न जाने किस ख्याल से, शमा फिर से जला कर देखा है !
तारे थें सारे, फिर भी आकाश की वो महफ़िल उदास थी
बड़ी जद्दोजहद से, बादलों का पर्दा हटा कर उसने चाँद को देखा है !
मुझको है मालूम, उसने मेरी आँखों में देखा है !
अश्क है या पानी इसका उसे कोई खबर नहीं
दरिया तो नहीं देखा मगर उसने समन्दर देखा है !
वो झूमते बाग़, वो गाती हवायें उन दिनों
खिज़ा में भी उसने बहार को देखा है !
दिन में माहताब, रात में उजाला तन्हाई में
उसने न जाने क्या क्या देखा है !
बहुत देर हो गयी सोच कर शमा बुझा दी उसने
न जाने किस ख्याल से, शमा फिर से जला कर देखा है !
तारे थें सारे, फिर भी आकाश की वो महफ़िल उदास थी
बड़ी जद्दोजहद से, बादलों का पर्दा हटा कर उसने चाँद को देखा है !
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