एक उम्र कम पड़ रही है उसके इंतज़ार में
एक तक़रार कम पड़ रही है उसके इज़हार में
दिल की हकीकत न जाने कैसे बयान की हर दफा
एक किताब कम पड़ रही है उसके फ़रियाद में
हर मोड़ पे हर जोड़ पे गुज़ारिश की हमने
एक सवाल कम पड़ रहा है उसके जवाब में
कभी खुशनुमा कभी ज़ख़्मी दिल लाया पनाह में
एक नज़राना कम पड़ रहा है उसके ऐतबार में
कुछ हालात फटकारते हैं मगर
एक बावला कम पड़ रहा है उसके लश्कर-ए-बहार में
एक तक़रार कम पड़ रही है उसके इज़हार में
दिल की हकीकत न जाने कैसे बयान की हर दफा
एक किताब कम पड़ रही है उसके फ़रियाद में
हर मोड़ पे हर जोड़ पे गुज़ारिश की हमने
एक सवाल कम पड़ रहा है उसके जवाब में
कभी खुशनुमा कभी ज़ख़्मी दिल लाया पनाह में
एक नज़राना कम पड़ रहा है उसके ऐतबार में
कुछ हालात फटकारते हैं मगर
एक बावला कम पड़ रहा है उसके लश्कर-ए-बहार में
1 comment:
बहुत ख़ूब !!
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