"बिलकुल मेरी हंसी हँसता था, मेरे संग गाता था
टूट गया तब जाना, वो तो एक आईना था ! "
पल भर के झगड़े में, पुराना आईना टूट गया
मिलते थे हर रोज़ जिससे, वो अपना छूट गया !
घर हो गया छोटा, बड़ी हो गयीं दीवारें सारी
जनता था जो मुझे मुझसे ज्यादा, वो शख्स कहीं खो गया !
उस आईने में समाये थे न जाने कितने आईने
टूट कर मुझे न जाने कितने रूप दिखा गया !
मुद्दतों रहा साथ मेरे, फिर भी अहमियत न जान पाया
टुटा वो इस कदर कि मुझे मेरी हैसियत बता गया !
टूटने के बाद ही सही, सोचा अब सम्भाला जाए
काट कर ऊँगली वो मेरी, बची नाराज़गी जता गया !
टूट गया तब जाना, वो तो एक आईना था ! "
पल भर के झगड़े में, पुराना आईना टूट गया
मिलते थे हर रोज़ जिससे, वो अपना छूट गया !
घर हो गया छोटा, बड़ी हो गयीं दीवारें सारी
जनता था जो मुझे मुझसे ज्यादा, वो शख्स कहीं खो गया !
उस आईने में समाये थे न जाने कितने आईने
टूट कर मुझे न जाने कितने रूप दिखा गया !
मुद्दतों रहा साथ मेरे, फिर भी अहमियत न जान पाया
टुटा वो इस कदर कि मुझे मेरी हैसियत बता गया !
टूटने के बाद ही सही, सोचा अब सम्भाला जाए
काट कर ऊँगली वो मेरी, बची नाराज़गी जता गया !
1 comment:
घर में एक आईना ही है जो इंसान के अकेलेपन को रोज़ाना महसूस करता है,
आईना तोड़कर कई तस्वीरों को देखने का क्या रवायत है?
न जाने कब तक इंसान आईनो को तोड़ कर अपनी तन्हाई दूर करेगा ?
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