काश
दिलों में फ़ासलें न होते
ऐसे थें तो हम मिले न होते
तुम्हारे एहसास हमारे ख्याल
यूं तनहा अकेले न होते
उन छाती से लिपट रोते
जिनमें हम पले न होते
वक़्त ने फेंके थे पासे आज़माने को
जल्दबाज़ी में यूं फिसले न होते
नाकाम होता दाव- ए- सियासत
गर बेताबी में जले न होते
हमारा भरोसा कमजोर न होता
ज़हर बोये न होते फले न होते
एक दुसरे के सोहबत से पूरे होते
यूं एक दूजे से खले न होते
काश
सहर होता कोई बेदाग़ ऐसा
अलग अलग फूल खिले न होते
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