Artwork by Linda Apple |
छोटी है ये ज़िन्दगी, मगर काफी है
न चाहा था ज्यादा, मिला भी नहीं
जैसे भी रहा है गुजर काफी है
इस जहां से आगे भी लम्बा है रास्ता
वैसे जीने के लिए इतना भी सफ़र काफी है
कितने ही नियत हुयीं ख़राब अन्धेरे में
दाग़-ए-दगा मिटाने को ये शहर काफी है
मातम का अँधेरा हो चाहे जितना घाना
हँसी के लिए तो इक नूर-ए-सहर काफी है
सोयी सोयी सी तबियत है हर मंज़र की
फिर भी, सोह्बत-ए-यार में चंद पहर काफी है
1 comment:
waah PK waah !!
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