Saturday, October 19, 2019

मैं खुद को ढूँढ लूँगा

मुझे यकीन है
मैं खुद को ढूँढ लूँगा
तुम्हे ढूँढ़ते ढूँढ़ते

खोया भी तो था
ऐसे हीं
तुम्हे खोते खोते
तुम्हे भूलते भूलाते

बस अफ़सोस इतना है कि
कुछ वक़्त हाथ से निकल गया
इन सब के दौरान
जो शायद फिर नहीं आने वाला

लोगों  का मानना है, वो मेरी उम्र थी
जो निकल गयी
मगर कौन जाने, खुद के मिलने पर
उसका भी मन बदले
फिर जवानी खिले रंग भरे
"आखिर जन्म और मौत
दो ही तो लकीरें है जीवन में
बाकी के पड़ाव तो मानने की चीज़े हैं"

सारे रिश्ते वैसे ही हैं
वहीँ पे सोते 
कभी कभार जम्हाई लेते
जब भी परिस्थितियों की सर्द हवा
गुजरती है उधर से 

मगर मुझे यकीन है
खुद से खुद के मिलने का
अबके मौसम बदलते ही!!

5 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

बहुत सुन्दर।

शुभा said...

वाह!!बहुत खूब!

Ritu asooja rishikesh said...

वाह बहुत सुंदर

Sudha Devrani said...

बहुत सुन्दर ...भावपूर्ण...
किसी के खोने पर खुद को खो दिया
भान आया है अब तो पा लिए हो
गुजरे वक्त से गिला करना
जब जागो तभी सबेरा

Impulse said...

It seems. Aapne jeevan ko bhit kareeb se dekha hai.... Great.. Iss duniya mein aise bhot kam hi hote hai..