Tuesday, October 1, 2013

जीने में उतना मज़ा न आता!

फूलों के संग अगर जो काटें न होते, 
तो उन्हें तोड़ने में उतना मज़ा न आता
हँसी के साथ अगर जो थोड़े आँसू न होते,
तो जीने में उतना मज़ा न आता!

नज़र मिला कर जो उन्होंने पलके न झुकाये होते,
तो नज़र मिलाने में उतना मज़ा न आता
रूठने पर अगर जो वो आसानी से मान गए होते, 
तो उन्हें मनाने में उतना मज़ा न आता!

वो अगर जो बताये समय पर हीं आ जाते,
तो उनसे मिलने में उतना मज़ा न आता
हर बात पर अगर जो वो मान जाते,
तो उनसे बात करने में उतना मज़ा न आता!

सफ़र में अगर जो कुछ लोग बिछुड़े न  होते,
तो किसी के साथ होने में उतना मज़ा न आता
ज़िन्दगी की राहें अगर जो बिन भटकाये मंजिल मिला देतीं,
तो उनपे चलने में उतना मज़ा न आता!

वो अगर जो फिर से याद न आये होते,
तो उन्हें भुलाने में उतना मज़ा न आता
मेरे सपनो को वो अगर जो अपनी जागीर न बनाये होते,
तो हर रोज सोने में उतना मज़ा न आता!

हँसी के साथ अगर जो थोड़े आँसू न होते,
तो जीने में उतना मज़ा न आता!

2 comments:

Rajeev Ranjan said...

Kafi achi rachana h bhai Pankaj.....

ज़िन्दगी की राहें अगर जो बिन भटकाये मंजिल मिला देतीं,
तो उनपे चलने में उतना मज़ा न आता!

mad_mumbler said...

बहुत ख़ूबसूरत II