क्षणिक
सुख के आवेश
में
किसी
को
जीवन पर्यन्त पीड़ा क्यों?
कुछ
अबोध, कुछ बोध
पीड़ा
तो पीड़ा है,
इन्हें
सहना पड़ा क्यों?
उफान
तो उठता रहा
है
हमेशा
से हीं सबमें, किन्तु
कहीं पे
तट
तोड़ सिंधु लहराया
क्यों?
सिंधु अपनी गरिमा भूल
पानी
ही पानी में
अपनी
मर्यादा मिलाया क्यों?
फूलों
का है संसार
फूलों
से हीं है संसार
सदा
सौन्दर्य ले निहार
ये इत्र
की आवेगी चाह
क्यों?
यश
नहीं, मान नहीं,
भय भी नहीं
कुछ
तो हो संकोच
ये
इंसानियत हुई हैवान
क्यों?