Thursday, November 28, 2013

Kuchh Faqeeron ki Toli Achchhi hai

कुछ की दुश्मनी अच्छी है उनकी दोस्ती से
कभी कभी कुछ की दूरी अच्छी है नज़दीकी से

कुछ लोग साथ हो लिए होते तो शायद बात कुछ और होती
फिर भी मान लिया, कुछ की जुदाई हीं अच्छी है गिरफ्तारी से

मज़लूम की आँखे ही दर्द बयां कर देती हैं
कुछ ज़ालिम की मार अच्छी है गद्दारी से

राब्ता था जिनसे उन्होंने हीं न बख्शा
कुछ गैरों की सलामी अच्छी है फ़रेबी से


रहबर बन कर वो ले आया हमें इन गर्दिशों में
कुछ फ़क़ीरों की टोली अच्छी है झूठी गुमानी से

Ek Dor Chaahat ki Baaki hai

एक डोर चाहत की बाकी है
एक सांस ज़िन्दगी की बाकी है

उस मोड़ पे गुजर गयी उम्र जहां
एक आस मिलन की बाकी है

बहुत दिन हुए यादों में घर किये
एक चेहरा तस्व्वुर में बाकी है

रात दिन अब यही तमाशा
मैं जागूँ और तेरी नींद बाकी है

जहां से गए थे तुम उस वीराने में
पुकारता हलक़ में ज़बान बाकी है 

लुटा के सब कुछ मदहोश है फिर भी
चढ़ावे के लिए एक जान बाकी है

मन करे तो लौट आना वहीँ
देख लेना एक ज़िंदा लाश बाकी है


Sunday, November 24, 2013

भीड़ में, है वह तन्हा

पीछे कदम बढ़ाता 
माज़ी के धुँधले निशानों पर
भूल आया था जिसे
उसे चारो ओर, ढूँढता

एक कदम आगे, तो
दो कदम पीछे
धक्का खाता, संभलता
चाह कर भी, मुड़ न पाता

उन साँसों कि आवाज़
आँखों से बात
कुछ गुनगुनाहट
फिर सुनना, सुनाना, चाहता

वक़्त बेवक़्त का गुस्सा
बेसबब तकरार
उसपर से ये बारबार
यादों में भी उसी से, झगड़ता

आते-जाते, चौक-चौराहे
कुछ देर का संग
एक लम्बी जुदाई
सुलगती यादें, भुलाता 

भीड़ में
है वह तन्हा !

Saturday, November 23, 2013

Voter

वह छिपता-छिपाता
बचता-बचाता
सड़क पर जाता
मिल न जाएं पार्टी वालें
मन ही मन शुक्र मनाता

न जाने
किस काल में काल बनकर
वादों का जंजाल ले कर
कितनों का काल ख़राब कर
धम से प्रकट हो जाए, उसका माथा फिराएं
वह सकपकाता, सहमा सा किनारे से निकल जाता

कुछ हैं उसके अपने
दूर के नज़दीकतम उसे बताते
अब तक दूर थे, पर आज जाना, ये भी करीब थे!
पार्टी में हैं, शायद इसलिए करीब हैं
वादों का एक लम्बा लिस्ट याद है,
सुनाना एक मात्र, वर्तमान में, जिनका काम है
वह सुन के आधे-अधूरे वादों को
सबको अपना समर्थन बताता, आगे बढ़ता जाता

कई बार है सुना
कितने वादों को
दम्भिकों के विवादों को
किराये के प्यादों को
अब कोई फर्क न पड़ता
आधा जीवन काट लिए उसने
उन्हें भी इशारों में समझाता, बाज़ार पहुँच जाता

एक किलो आलू, आधा किलो भाजी
एक पाव टमाटर , एक पाव प्याज़
माँगता, जेब टटोलता
कुछ सोचता.... तन खड़ा हो फिर चीज़े गिनाता
आधा झोला भर
सहमा सा घर लौटता
नज़र घुमाता, घबराता, आगे बढ़ता जाता !

Monday, November 11, 2013

एक बावला कम पड़ रहा है उसके लश्कर-ए-बहार में

एक उम्र कम पड़ रही है उसके इंतज़ार में
एक तक़रार कम पड़ रही है उसके इज़हार में 

दिल की हकीकत न जाने कैसे बयान की हर दफा
एक किताब कम पड़ रही है उसके फ़रियाद में

हर मोड़ पे हर जोड़ पे गुज़ारिश की हमने
एक सवाल कम पड़ रहा है उसके जवाब में

कभी खुशनुमा कभी ज़ख़्मी दिल लाया पनाह में
एक नज़राना कम पड़ रहा है उसके ऐतबार में

कुछ हालात फटकारते हैं मगर
एक बावला कम पड़ रहा है उसके लश्कर-ए-बहार में