Wednesday, September 17, 2014

ऐसा क्यूं है कि चराग सारे चुप हैं


ऐसा क्यूं है कि चराग सारे चुप हैं
वतन परस्तों की कतारे चुप हैं

अँधेरे से जंग कब तक झोपड़े करेंगे
अभी भी महलों की दीवारे चुप हैं

सड़क पर क़त्ल हुआ एक गरीब का
अमीरों की जश्न में डूबे अखबारे चुप हैं

कोई वज़ह तो होगी कि हिमालय भी बहने लगा
पूछो तो, हर राज्य की सरकारे चुप है

कैसा खौफनाक मंज़र था उस वारदात का
आज तक चाँद और तारे चुप हैं

बर्बादी बेहिसाब हुई पूरा शहर डूबा
अपनी ग़लती पे दरिया और किनारे चुप हैं

जुर्म करने वालों तुम बेकौफ फिरो
आज कल बगावत के नारे चुप हैं

पत्थरों की चोरी में चिराग भी गुम हुए
अपनी बदकिस्मती पे मज़ारे चुप हैं

1 comment:

Madhulika Patel said...

सुन्दर रचना ।