Thursday, November 28, 2013

Ek Dor Chaahat ki Baaki hai

एक डोर चाहत की बाकी है
एक सांस ज़िन्दगी की बाकी है

उस मोड़ पे गुजर गयी उम्र जहां
एक आस मिलन की बाकी है

बहुत दिन हुए यादों में घर किये
एक चेहरा तस्व्वुर में बाकी है

रात दिन अब यही तमाशा
मैं जागूँ और तेरी नींद बाकी है

जहां से गए थे तुम उस वीराने में
पुकारता हलक़ में ज़बान बाकी है 

लुटा के सब कुछ मदहोश है फिर भी
चढ़ावे के लिए एक जान बाकी है

मन करे तो लौट आना वहीँ
देख लेना एक ज़िंदा लाश बाकी है


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