Tuesday, February 4, 2014

क्यों व्यर्थ चिंता करते हो?

क्यों व्यर्थ चिंता करते हो? तसव्वुरे जाना में दिन काटो
और जो जुदा हो गए हो, तो फिर ग़ज़ल में दिन काटो

इन छीटों से डर गये तो मझधार में क्या होगा
बेहतर है कूचे को छोड़, अपने घर में दिन काटो

क्यूँ हर घड़ी तुम्हारी नज़र इस घड़ी पर है
कभी तो ऐसा हो, वक़्त को भूल कर दिन काटो

इतनी जल्दी बेमयस्सर चाहत पे गुमान! मियाँ
एक बार छुप कर, कू-ए-यार में दिन काटो

माना वो हादसा ज़ख्म गहरा दे गया, मगर 
ये तारीख भी सँवर कर आयी है, इसे आजमा कर देखो !

कैद परिन्दों जैसे दिल में हैं ख्वाहिशें कितनी
किसी रोज़ तो आसमां को अपना बना कर देखो !

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