Tuesday, April 15, 2014

सूखता दरिया प्यासा जीना सिखा गया

वो बेवफा न था मगर बेवफा बना गया
सूखता दरिया प्यासा जीना सिखा गया !

काटों में रहा हरदम फिर भी हँसता रहा
टुटा गुल गिरकर भी महकना सिखा गया !

ज़मीं न घोसला, आसमां था जिसका ठिकाना
उड़ता परिंदा फ़कीरी का मज़ा बता गया !

छोटा था मगर अड़ा था, तूफ़ानो से भी लड़ा था
चौखट का चिराग लड़कर जलना सिखा गया !

गिरता रहा बढ़ता रहा, औरों के लिए मुड़ता रहा
वो एक दरिया था जो हर हाल में बढ़ना सिखा गया !

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