Tuesday, May 20, 2014

काश.…

काश 

दिलों   में  फ़ासलें  न   होते 
ऐसे थें तो हम मिले न होते

तुम्हारे एहसास हमारे ख्याल 
यूं   तनहा   अकेले   न   होते 

उन  छाती   से  लिपट  रोते 
जिनमें   हम   पले   न  होते

वक़्त ने फेंके थे पासे आज़माने को 
जल्दबाज़ी  में  यूं  फिसले  न  होते

नाकाम होता दाव- ए- सियासत  
गर   बेताबी   में   जले   न  होते

हमारा  भरोसा कमजोर न होता 
ज़हर  बोये  न  होते फले न होते

एक दुसरे के सोहबत से पूरे होते 
यूं  एक  दूजे  से  खले  न  होते

काश 
सहर  होता  कोई  बेदाग़  ऐसा
अलग  अलग फूल खिले न होते

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