उस्ताद
नुसरत फ़तेह अली खान की क़व्वाली "ये जो हल्का हल्का सुरूर है " की धुन पे अपने भाव गढ़ने की एक कोशिश ....
ये तो तेरी कशिश की आग थी
जो बुझे चिराग को जला दिया
बनना तो चाहा फ़क़ीर था
तूने मुझको शायर बना दिया !
भटकने की थी ख्वाहिशें
तूने अपने दर पे फंसा लिया
झुका न था ये सर कहीं
तेरे सजदे में मैंने झुका दिया !
दिल तो कब से खामोश था
मुद्दतों से ही बेहोश था
तूने जाम कैसा पिला दिया
मदहोश करके नचा दिया !
तूने राग कैसा सुना दिया!
पागल हीं मुझको बना दिया !
तुमसे कोई शिकायत नहीं
तुमसे हुई कोई गल नहीं
ये तो तेरा बस एक नूर था
मिला मुझे वो कोहिनूर था
जिसे रब हीं मैंने बना लिया
खुद को जिसमें भुला दिया !
तेरी इबादत मेरा जुनून है
तेरी हँसी मेरा सुकून है
बंदिशें भी तेरी क़ुबूल है
रहमत मिली तेरी तस्वीर है
जिसे दिल में मैंने बसा लिया
तूने दिल को जन्नत बना दिया !
तेरी कशिश की आग थी
जो बुझे चिराग को जला दिया
बनना तो चाहा फ़क़ीर था
तूने मुझको शायर बना दिया !
ये तो तेरी कशिश की आग थी
जो बुझे चिराग को जला दिया
बनना तो चाहा फ़क़ीर था
तूने मुझको शायर बना दिया !
भटकने की थी ख्वाहिशें
तूने अपने दर पे फंसा लिया
झुका न था ये सर कहीं
तेरे सजदे में मैंने झुका दिया !
दिल तो कब से खामोश था
मुद्दतों से ही बेहोश था
तूने जाम कैसा पिला दिया
मदहोश करके नचा दिया !
तूने राग कैसा सुना दिया!
पागल हीं मुझको बना दिया !
तुमसे कोई शिकायत नहीं
तुमसे हुई कोई गल नहीं
ये तो तेरा बस एक नूर था
मिला मुझे वो कोहिनूर था
जिसे रब हीं मैंने बना लिया
खुद को जिसमें भुला दिया !
तेरी इबादत मेरा जुनून है
तेरी हँसी मेरा सुकून है
बंदिशें भी तेरी क़ुबूल है
रहमत मिली तेरी तस्वीर है
जिसे दिल में मैंने बसा लिया
तूने दिल को जन्नत बना दिया !
तेरी कशिश की आग थी
जो बुझे चिराग को जला दिया
बनना तो चाहा फ़क़ीर था
तूने मुझको शायर बना दिया !
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