Wednesday, January 8, 2014

दब गयी एक चीत्कार

बर्फ सी ठंढी रात में
उस अधूरे खंडहर में
जलती रही आग
गूँजते रहें वो ठहाके
और दब गयी एक चीत्कार
उस अधूरे खंडहर में !

क़त्ल हुआ एक साहस का
एक पहल का
बुलन्द-बेधड़क एक स्वाभिमान का
दागदार हुआ, एक रास्ता
जो बना था कई बंधन तोड़ कर
बाहर आने से, उस दहलीज को पार करने से 
जो शादियों से अपने विस्तार पर अकड़ता था

एक उम्मीद की किरण एक कोने से
मिटा दी गई
फिर, समेट ली गयीं अनगिनत पुलकित किरणें
एक भय से
उस खबर से
कि,  दब गयी एक चीत्कार
उस अधूरे खंडहर में !

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