Wednesday, February 12, 2014

और बेकार उम्र गुजरने दिया !

जो था एक ख्वाब उसे ख्वाब ही रहने दिया
छटपटाते चाहतों को इस दुनिया में बंधने दिया !

धुएं का है जो यह उजाला बेहोशी कण कण लिए, हाँ 
कुछ वादों और विवादों के लिए, रग रग  में इसे घुसने दिया !

होगा क्या इससे बुरा, हम रहे या ना रहे
उस घड़ी जब चीखना था, खुद को चुप रहने दिया!

आएगा सैलाब जब और समंदर सब निगल जायेगा
मींचते रहेंगे हाथ सारे, जब दरिया को हीं बंधने दिया !

मशाल लिए कुछ लड़ते रहें, चिल्लाते और जगाते रहे, मगर
बदहवासी ऐसी, कि खुदी को अँधेरे में गोता लगाने दिया !

एक था न वक़्त कभी, रुका न किसी के साथ कहीं
बख्श दिया उन लम्हों को, और बेकार उम्र गुजरने दिया !