Tuesday, March 25, 2014

दौड़ता पत्ता

सड़क की दूसरी ओर
डिवाइडर से सटकर
वो सूखा पत्ता हवा से दौड़ लगा रहा था
और अचानक से रुक गया
सुसता रहा था या हार चूका था
कह नहीं सकता !

उसने सर उठा कर मेरी ओर देखा
फिर आगे देखा
थोड़ा हिला मगर ठहर गया
शायद थकान बाकी थी
फिर सर उठा आगे देखा
हांफते हुए झुक कर साँस लेते हुए धावक के जैसे
मुस्कुरा रहा था या पछता रहा था
कह नहीं सकता !

मेरी नज़र में
आगे पीछे कोई और पत्ता न था
मगर वो बेचैन था
शायद उसे मालूम होगा उसके प्रतिद्वंदियों का ठिकाना
दूर पे ही सही शायद उसे दिख भी रहे होंगे  
हो सकता है गुजरे हवा को भी वह देख रहा होगा
अपना मुकाम भी जान रहा होगा
डरा था या हिम्मत जुगाड़ रहा था
कह नहीं सकता !

तभी हवा का एक झोका आया
और वह फिर दौड़ा बिना मुझे देखे
लगा इस बार हवा को पछाड़ेगा, लेकिन
कुछ दूर जाके फिर रुका
मै अपनी राह बढ़ता रहा
बराबर पहुच कर उसे देखा
उसने भी मुझे देखा 
मैंने सोचा
वह न जाने किस अनजानी दौड़ में दौड़ रहा है
कब से भाग रहा है कुछ खबर भी है रास्ते की ?....

वह मेरे बारे में ऐसा ही सोच रहा होगा ?
कह नहीं सकता !

1 comment:

संजय भास्‍कर said...

गहरी भावनाए व्यक्त करती
बहुत-बहुत सुन्दर रचना...