Saturday, June 28, 2014

फिर से एक खाब देखने लगा हूँ मैं

फिर से खोया खोया सा रहने लगा हूँ मैं
फिर से एक खाब देखने लगा हूँ मैं !!

पलकों से शबनम खोया था कभी
हवा छोड़ दरिया से पूछने लगा हूँ मैं !!

मतलब बेमतलब की बातें बहुत हुई
अब तो पागलपन चखने लगा हूँ मैं !!

मिलना बिछुड़ना एक खेल सा हो गया
आज़ादी की जंजीर भी तोड़ने लगा हूँ मैं !!

बेस्वाद जान पड़ता हर लज़ीज ख़ुराक
बदलाव के लिए फ़ाक़ा करने लगा हूँ मैं !!

हुआ मयस्सर जो भी हासिले हस्ती "पंकज "
वक़्त हुआ कूच का पाथेय जुगाड़ने लगा हूँ मैं !!


1 comment:

Anonymous said...

nice lines