Wednesday, July 30, 2014

आक़िबत

एक हँसी के साथ शुरू हुई
वो घटना
दो चार और हँसे
देखते ही देखते
हँसी का संक्रमण ऐसा हुआ
सभी हँसने लगे
पूरा क़स्बा
फिर शहर
सारा मुल्क
सारी दुनिया
बिना जाने-समझे सभी हँस रहे थे
मानो कारण जानने की जरूरत हो ही नहीं
हँसी, हवाओं के साथ
खुशबू की तरह
सब जगह समा गयी

कहते हैं इसी हाल में
वो दुनिया कहीं खो गयी
अनंत ब्रह्मांड में

हालाँकि ऐसे में
कुछ कहने सुनने की जरूरत ही क्या रह गयी 
इससे बेहतर अंजाम हो भी क्या सकता था 
किसी दुनिया के वजूद का  !

(आक़िबत - end/conclusion/future life)

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