चाँद, तारों की गुफ्तगू सुनता रहा रात भर
जलन से बादल रंग बदलता रहा रात भर
नज़र में आने को बेताब एक परिंदा
हवा में कलाबाजियाँ करता रहा रात भर
जलती शमा के इश्क़ में पागल परवाना
काँच पर सर पटकता रहा रात भर
किसी और को न पा कर हवा फिर से
सोते पेड़ को जगाती रही रात भर
मखमल के बिस्तर से सड़क के फूटपाथ तक
नए पुराने ख़ाबों का सौदा होता रहा रात भर
नादान औलादों की गुस्ताखी माफ़ कर, वो
फ़िज़ा को शबनम से सजाता रहा रात भर
सबकी जरूरत जान कर थका हारा सूरज
फिर से जलने को तैयार होता रहा रात भर
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'The Starry Night' painting by Vincent van Gogh |
नज़र में आने को बेताब एक परिंदा
हवा में कलाबाजियाँ करता रहा रात भर
जलती शमा के इश्क़ में पागल परवाना
काँच पर सर पटकता रहा रात भर
किसी और को न पा कर हवा फिर से
सोते पेड़ को जगाती रही रात भर
मखमल के बिस्तर से सड़क के फूटपाथ तक
नए पुराने ख़ाबों का सौदा होता रहा रात भर
नादान औलादों की गुस्ताखी माफ़ कर, वो
फ़िज़ा को शबनम से सजाता रहा रात भर
सबकी जरूरत जान कर थका हारा सूरज
फिर से जलने को तैयार होता रहा रात भर
1 comment:
well written..
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