Monday, August 25, 2014

मौत से पहले दर्द का हिसाब क्यूँ

मौत से पहले दर्द का हिसाब क्यूँ
तेरे होने पे भी मिज़ाज ख़राब क्यूँ

घर यादों में बना लूँ तेरे बिना फिर भी 
दरीचों से झाकने को दिल बेताब क्यूँ

वस्ल का महताब आज भी है शर्माता
जुदाई पे बेबाक हुआ आफ़ताब क्यूँ

अँधेरों के राज़ अँधेरे में हैं दम तोड़ते
इस उजाले पे फ़िजूल हिजाब क्यूँ

हक़ीक़त के शिकंजे में रोती है रूह
ख़ाबों के परों में आया शबाब क्यूँ

गर्दिशों ने चखाया हमें अब्रों शराब
वाइज़ पूछे तो भी दूँ जवाब क्यूँ

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