Tuesday, November 18, 2014

कतरा कतरा लहू पानी में मिल गया

'Skull of a Skeleton' by Vincent van Gogh
कतरा कतरा लहू पानी में मिल गया
वो सियासत में सर से पाँव खिल गया

जो भी आया राह में बेगैरत ठहरा
इस ज़माने की रवायतों से हिल गया

कुदरत की साज़िश थी या आदमजात की
आग उगलने वाला हर एक लब सिल गया

रात कोने में बैठा फिर कोई रोता था
उजालों की रफ़्तार में जैसे फिसल गया

एक अरसे से दरिया प्यास छुपाये बैठा था
जो गया किनारे दरिया में हीं मिल गया

तुम कैसे बचे रहे इस ग़लतफ़हमी से
जब कि हर ईमान वाला उसमें जल गया

हर आँख ने खून उगला था उस मंज़र पे
हैरानी है ज़मान इतनी जल्दी भूल गया

हद ये हुई वारदात का चश्मदीद गवाह चाँद
फैसले के दिन बादल पहन निकल गया

किसके जुर्म की सज़ा किसे मिली 'शादाब'
तू भी तो ऐन मौके पर ही बदल गया !

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