Friday, January 9, 2015

ये मत पूछो कि रात इतनी ठंढी क्यूँ है

'Painter on the Road to Tarascon' by Vincent van Gogh
ये मत पूछो कि रात इतनी ठंढी क्यूँ है
चांदनी आईने में छुप कर डरी क्यूँ है

सूरज व्रत तोड़ बहुत दूर निकला
फिर इन सितारों के लबों पे हँसी क्यूँ है

औरों की बर्बादी पे हँसने वालों
तुम्हारी महफ़िल में ख़ामोशी क्यूँ है

जिस्म के चराग जले, लहू तेल बने
महलों के सेहन में अंधियाली क्यूँ है

लूट लो साँसों की जो पूंजी बाकी है
टूटे पिंजड़े में तड़पती ज़िन्दगी क्यूँ है

ऐ पत्थर पहनने वालों पत्थरों
तुम्हारे घर में बिलकती रोटी क्यूँ है

रोटी फेकों भूखे नंगो की फ़ौज पर
फिर देखो सब्र क्या है बेबसी क्यूँ है

मिट जायेगा हर निशाँ नए हवाओं तले
'शादाब' शख़्सियत की नक्काशी क्यूँ है!!

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