Saturday, December 20, 2014

अब सरकार पे भार हो गया है ग़रीब

अब सरकार पे  भार हो गया है ग़रीब
उसके इज़्ज़त पे मार हो गया है ग़रीब !

भूखा है मगर अभी तक मरा नहीं
ज़िन्दगी का कर्ज़दार हो गया है ग़रीब !

मौज़ूदगी से हर मंज़र को बर्बाद करता
रुतबा-ए-वतन में गद्दार हो गया है गरीब !

नंगे सोना नंगे जागना रोते बिलकते 
सब लाचारी का वफ़ादार हो गया है गरीब !

पटक दो उठा कर कहीं से कहीं भी
हर आजमाईश में बेकार हो गया है ग़रीब !

हटाओ इसे या निगाह फेरो 'शादाब'
हसीं नज़ारों पे पहरेदार हो गया है ग़रीब !

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