माना कि उससे बहुत प्रेम है
उसकी आँखों में जान बसता है
फिर भी रात के वक्त
कभी एक क्षण ऐसा भी आता है
जब नींद
हमारी पलकों पे करवटें ले रही होती है
मगर हम टहल रहे होते हैं
या फिर बेड पे बैठे धीमे धीमे हिल रहे होते हैं
गोद में लिए उस नन्ही जान को
एक कोशिश में मशगूल
एक मिशन पे....
और काफ़ी देर बाद
जब एक ठहराव सा लगता है, तो
अपने कोशिश के अंजाम को देखने
हम देखते हैं एक उम्मीद के साथ
उस हसीन चेहरे को, और
वो आँखें..
वो आँखें
जो हमें वापस देख रही होती हैं हमारी ओर
टूकूर-टूकूर
बड़ी अजीब लगती हैं वो आँखें
उस वक्त...
उड़ा देती है हमारी पलकों से
नींद की चिड़ियाँ को,
ले आती हैं शिकन हमारे माथे पे,
और उनमें दिखती हैं हमारी हार
उस कोशिश की
हम मुस्कुरा देते हैं अपनी हार पे
फिर चूम लेते हैं उसके ललाट को
लग जाते हैं फिर
उसी कोशिश में!!
पंकज कुमार “शादाब”
~१३/०७/२०२०
1 comment:
बहुत भावपूर्ण रचना ।
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