Monday, January 23, 2017

गमे हस्ती हमीं जानते हैं

गमे हस्ती हमीं जानते हैं
टूटी कश्ती हमीं जानते हैं।।

कुछ नहीं दिल लगाने को यहाँ
बेपरस्ती हमीं जानते हैं।।

न चाहते हुये भी लूट गया, हाय!
जबरदस्ती हमीं जानते हैं।।

पागल क्यूँ नहीं हो जाता हूँ मैं
हाले हस्ती हमीं जानते हैं।।

मुहब्बत छुपी है काफिर के दिल में
नेक बस्ती हमीं जानते हैं।।

संग मेरे तुम बेफिक्र चलो
राहे मस्ती हमीं जानते हैं।।
~पंकज कुमार "शादाब" २३/०१/२०१७

Wednesday, July 20, 2016

कुछ नहीं तो दिल में बेकरारी पालो

कुछ नहीं तो दिल में बेकरारी पालो
चन्द लम्हे हैं दामन में दिलदारी पालो

कल  देखा परिन्दे यूँ  गुनगुना रहे थे 
"ज़मीं छोड़ो फिर मस्ती हमारी पालो"

छुप कर ज़िन्दगी भी क्या जीना
जो हो सरे आम दोस्ती यारी पालो

सारे ख़ज़ाने यहीं मिट्टी में मिल जायेंगे
अपने लिए कुछ नहीं तो खुद्दारी पालो

खुदा के वास्ते बख्श दो मैखाने को
इस खुमारी में तो न खिदमतदारी पालो

आओ चलो जश्न मनाते है बर्बादी का
ग़म से लड़ने को दिल बादखारी पालो

मैय्यत में देखा उसके चेहरे पे ख़ुशी 
तुम भी 'शादाब' कुछ वैसी बीमारी पालो

Saturday, November 21, 2015

चिंगारी है तो फिर आग क्यूँ नहीं बनती

चिंगारी है तो फिर आग क्यूँ नहीं बनती
कुछ चल पड़े फिर भीड़ क्यूँ नहीं चलती !!

आसमान धुयें  का है या धुआँ आसमान
ऊपर की और निगाह क्यूँ नहीं ठहरती !!

कब तलक देखते रहेंगी  यूं तमाशा
जनता खुद ही किरदार क्यूँ नहीं बनती !!

तुम भी हो हम भी हैं वक़्त भी सही है
फिर बातों बातों में बात क्यूँ नहीं बनती !!

इंतज़ार में उम्र है रास्ते पे निगाह
ये बात मंज़िल तक क्यूँ नहीं पहुचती !!

दिन और आएंगे शाम जलती रहेगी
इसी खबर से रात क्यूँ नहीं गुज़रती !!

Saturday, June 27, 2015

वह मुझमें हीं कहीं खो गया है

वह मुझमें हीं कहीं खो गया है
कोई और था जो मेरा हो गया है

अब नज़र नहीं मिलाता मुझसे
मगर मेरी आँखों से रो गया है

किसी के इंतज़ार में देर रात तक
जाग कर फिर मुझमें सो गया है

प्यार से बुलाओ शायद लौट आये
अभी अभी रूठ कर जो गया है

वो दीवाना इधर से भी गुजरा है शायद
इस बंजर में भी बीज बो गया है 

हक़ सभी जताते हैं उस पर मगर 
खुद नहीं जानता वो किसका हो गया है

बरसों से लोग उसे पागल कहते हैं
मगर कोई नहीं जनता क्यूँ हो गया है

ज़िन्दगी में अब डरना किससे 'शादाब'
जो हादसा होना था सो हो गया है

-पंकज कुमार 'शादाब'