Wednesday, December 4, 2013

Shabdon ke Saath Beh Gayi Kavita

विचारों का आधार न मिला
जनहित के लिए कारोबार न मिला
भागते समय का सरोकार न मिला
अपेक्षित अधिकार न मिला 
हुई विषय से परे, तो
शब्दों के साथ बह गयी कविता

उतुंग शिखरों पर नज़र गड़ाए
समुद्र तली में रमी लगाये
भटकती हवा से मेल बढ़ाये
कलियों के संग रास रचाये
हुई ज़मीन से विरक्त, तो
शब्दों के साथ बह गयी कविता

मन में एक भाव दबाते
सपनों का संसार बनाते
खुद से हीं तर्क लड़ाते
न जाने किससे छिपाते
हुई विकल, तो
शब्दों के साथ बह गयी कविता


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