Tuesday, March 18, 2014

रेडी-मेड ज़िन्दगी

रेडी-मेड ज़िन्दगी और पके-पकाये ख्वाब बिकने लगें
सड़को पर नाचते-गाते वादों की चादर बिछने लगें !

दीमक लगी किवाड़ भस-भसा के गिरने लगी
और वे कहतें हैं खुली हवा के लिए दरवाजे खुलने लगें !

कहीं पे मौत चिल्लाने लगी लाशे फड़-फड़ाने लगीं   
वहीँ झूमने लगे कदम, शामियानों में दरबार लगने लगें !

खुली हवाओं में है बन रहे सपनों के किलें यहाँ
बातों के पेड़ों पे हर समस्या का समाधान झूलने लगें !

गले में जब तब नमी है चिल्ला लो जितना बन सके
माइक है सामने तुम भी अब टीवी में दिखने लगे !

जो है जैसा वैसा हीं रहेगा यह तो पहले से है लिखा
अब तो नफा नुक्सान के आगे, खानदानी व्यपार चलने लगें !

3 comments:

BARUN PPC/SEM EXPERT(9015515639) said...
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BARUN PPC/SEM EXPERT(9015515639) said...

good one

संजय भास्‍कर said...

अद्भुत भाव.... सुन्दर अभिव्यक्ति