Sunday, March 23, 2014

दिल मांगे मोर !

फ़िजाओं में है राजनीति का शोर
न जाने क्यूँ सबका हीं दिल मांगे मोर !

कैसे चलेगा काम यहाँ जब
चलता नहीं किसी का किसी पे जोर !

यही सवाल अब हर घडी हर रोज़
यह घड़ी है कौन सी-शाम है या भोर !

कल नहीं तो क्यूँ हुआ वह आज चोर
सामने नहीं पीछे सही, कोई तो रहा है बटोर !

मुफ्तखोर कहे है हम नहीं वह है सूदखोर
अब कैसे कहें कौन है मुँहचोर और कौन चुगलखोर !
 
बज गयी घंटी हो गयी शाम
कट गयी पतंग, अब बटोर लो अपने अपने डोर !

कथा है यह शाश्वत, इसका कहीं नहीं है छोर
चलो यार, दिमाग पे फिजूल मत लगाओ जोर !

2 comments:

mad_mumbler said...

sahi hai :)

संजय भास्‍कर said...

फ़िजाओं में है राजनीति का शोर
न जाने क्यूँ सबका हीं दिल मांगे मोर !

वाह बेहतरीन और ज़बरदस्त.....बहुत ही पसंद आई पोस्ट।

संजय भास्कर
कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की देहलीज़ पर भी आये
http://sanjaybhaskar.blogspot.in