फ़िजाओं में है राजनीति का शोर
न जाने क्यूँ सबका हीं दिल मांगे मोर !
कैसे चलेगा काम यहाँ जब
चलता नहीं किसी का किसी पे जोर !
यही सवाल अब हर घडी हर रोज़
यह घड़ी है कौन सी-शाम है या भोर !
कल नहीं तो क्यूँ हुआ वह आज चोर
सामने नहीं पीछे सही, कोई तो रहा है बटोर !
मुफ्तखोर कहे है हम नहीं वह है सूदखोर
अब कैसे कहें कौन है मुँहचोर और कौन चुगलखोर !
बज गयी घंटी हो गयी शाम
कट गयी पतंग, अब बटोर लो अपने अपने डोर !
कथा है यह शाश्वत, इसका कहीं नहीं है छोर
चलो यार, दिमाग पे फिजूल मत लगाओ जोर !
न जाने क्यूँ सबका हीं दिल मांगे मोर !
कैसे चलेगा काम यहाँ जब
चलता नहीं किसी का किसी पे जोर !
यही सवाल अब हर घडी हर रोज़
यह घड़ी है कौन सी-शाम है या भोर !
कल नहीं तो क्यूँ हुआ वह आज चोर
सामने नहीं पीछे सही, कोई तो रहा है बटोर !
मुफ्तखोर कहे है हम नहीं वह है सूदखोर
अब कैसे कहें कौन है मुँहचोर और कौन चुगलखोर !
बज गयी घंटी हो गयी शाम
कट गयी पतंग, अब बटोर लो अपने अपने डोर !
कथा है यह शाश्वत, इसका कहीं नहीं है छोर
चलो यार, दिमाग पे फिजूल मत लगाओ जोर !
2 comments:
sahi hai :)
फ़िजाओं में है राजनीति का शोर
न जाने क्यूँ सबका हीं दिल मांगे मोर !
वाह बेहतरीन और ज़बरदस्त.....बहुत ही पसंद आई पोस्ट।
संजय भास्कर
कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की देहलीज़ पर भी आये
http://sanjaybhaskar.blogspot.in
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