Tuesday, December 2, 2014

दिन कब बीता पता ही नहीं चला

दिन कब बीता पता ही नहीं चला
चाँद कब रूठा पता ही नहीं चला

सितारों से सदा बड़ी देर आई
बादल कब हटा पता ही नहीं चला

जिधर से भी गुज़रा काँटे ही चुना 
फूल कब खिला पता ही नहीं चला

पूरी बात हँसते हँसते ही हुई, उसे 
बुरा कब लगा पता ही नहीं चला

सफ़र के नज़ारे हमने साथ देखें
क्या कब चुभा पता ही नहीं चला

खुद से थोड़ी बात क्या की 'शादाब'
काफ़िला कब छूटा पता ही नहीं चला

No comments: