Friday, December 19, 2014

पहले हथियारों की दुकाने बंद हों

 पहले  हथियारों  की  दुकाने  बंद हों
फिर  इंसानियत  के  नारे  बुलंद हों

दोनों हमसफ़र हो ही  नहीं सकते
सराब फरोश   सारे   नज़रबंद  हों

अपने फायदे से मज़बूर हो चुके
वाइज़ों की कैसे भी हो ज़ुबाँ कुंद हो

क़ैद-ए-आराम से बाहर भी हस्ती है
अब तो जागें जिन्हे अमन पसंद हो



लज़्ज़ते खूं से जिसके रहबर मदहोश हो
उस दीन के खिलाफ आवाज़ बुलंद हो

क़त्ल हो कर कहीं रूह न तड़प  उठे 
फरियाद करो ग़म बदन में पाबंद हो

तुम ही गुनहगार, खुद के क़ातिल भी तुम
कबूल लो 'शादाब' कहीं शोहरत न मंद हो !!

सराब फरोश - mirage seller, वाइज़ों- preachers, कुंद - obtuse, रहबर - guide

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